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मैं सिर्फ दलितों का नेता नहीं हूं, 50 हजार मुस्लिमों ने भी मुझे वोट दिया : जिग्‍नेश मेवाणी jignesh mewani kehte hai ki mai sirf dalito ka neta nahi hu

जिग्‍नेश मेवाणी कहते हैं कि 'मेरी लड़ाई गरीबों, वंचितों और शोषितों की है. अगर कोई दलित कारखाना मालिक अपने ब्राह्मण कर्मचारियों पर अत्‍याचार करता है तो मैं गरीब ब्राह्मण की लड़ाई लडूंगा'.


नई दिल्‍ली : उत्‍तर गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से भारी मतों के अंतर से जीत हासिल करने वाले युवा दलित नेता जिग्‍नेश मेवाणी गुजरात की राजनीति में एक उभरता चेहरा बन गए हैं. मेवाणी राज्‍य में बदलाव की कोशिश लाने में लगे हैं. दलित नेता कहे जाने पर जिग्‍नेश मेवाणी कहते हैं कि 'मैं सिर्फ दलितों का नेता नहीं हूं, मैं सभी का नेता हूं.' जिग्‍नेश मेवाणी का दावा है कि 'वडगाम में उन्‍हें 50 हजार से ज्‍यादा मुसलमानों ने वोट दिया और उनकी जीत के लिए 250 से अधिक महिलाओें ने रोज़ा रखा था'. चुनाव जीतने के बाद जिग्‍नेश अब दलित आंदोलन को मजबूत बनाने की दिशा में जोर दे रहे हैं.
जिग्‍नेश मेवाणी कहते हैं कि 'मेरी लड़ाई गरीबों, वंचितों और शोषितों की है. अगर कोई दलित कारखाना मालिक अपने ब्राह्मण कर्मचारियों पर अत्‍याचार करता है तो मैं गरीब ब्राह्मण की लड़ाई लडूंगा'. जिग्‍नेश मेवाणी का इरादा दलित आंदोलन को सशक्त बनाने और एक मजबूत मजदूर संघ बनाने का है. इसके लिए जिग्‍नेश मेवाणी कहते हैं कि हम दलित आंदोलन को बेहद मजबूत बनाएंगे. मैं मुस्लिमों और आदिवासियों की लड़ाई लडूंगा. हम एक मजबूत मजदूर संघ बनाएंगे.
हदबंदी कानून के तहत दलितों को सिर्फ कागजों पर ही भूमि आवंटित की गई, लड़ाई लडूंगा : मेवाणी
दरअसल, गुजरात में भूमि आवंटन के दो प्रावधान है. भूमि हदबंदी कानून के तहत जमींदारों से अतिरिक्‍त जमीन लेकर उसे भूमिहीनों में बांटा जाता है और इसी तहर कृषि भूमि हदबंदी कानून के तहत बंजर जमीन को भूमिहीनों में बांट दिया जाता है, लेकिन जिग्‍नेश दावा करते हैं कि 'गुजरात में इस प्रावधान के तहत दलितों को सिर्फ कागजों पर ही भूमि आवंटित की गई है और अब वह इस मुद्दे को विधानसभा में उठाना चाहते हैं'. वह मानते हैं कि इससे सत्‍तारुढ़ भाजपा के नेताओं का नाराज होना तय है. उनका दावा है कि करीब 56,873 एकड़ जमीन को उनके सही और असली मालिक को दिया ही नहीं गया. उनका कहना है कि मेरी सुप्रीम कोर्ट में एक सीनियर लॉयर से बात चल रही है और वे मेरा यह केस मुफ्त में भी लड़ने को राजी हो गए हैं. गुजरात हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है. वे कहते हैं कि वकील कोर्ट में लड़ाई लड़ेंगे, जबकि मैं सड़कों पर आंदोलन करूंगा. 
प्रोफेसर संजय भावे, जिनकी विचारधारा का मेवाणी पर रहा है गहरा असर...
अहमदाबाद स्थित आश्रम रोड पर एचके आर्ट्स कॉलेज में अंग्रेजी साहित्‍य पढ़ाने वाले प्रोफेसर संजय भावे का युवा मेवाणी पर गहरा असर रहा है. मेवाणी भी कई बार कह चुके हैं कि उनकी विचारधारा पर उनके शिक्षक का गहरा योगदान रहा है. मेवाणी के शिक्षक याद करते हुए बताते हैं कि मुझे याद है कि जब साल 2002 में गुलबर्ग सोसायटी हत्‍याकांड हुआ था, तब मुझे मेवाणी ने घबराई हुई आवाज में फोन करते हुए कहा था कि बहुत बुरा हो रहा है. तब मुझे अहसास हुआ कि मेवाणी इन मुद्दों पर कितने गंभीर है. हालांकि प्रोफेसर संजय भावे को यह शिकायत भी है कि उनके मौजूदा छात्रों में से केवल कुछ की ही राजनीति में दिलचस्‍पी है. उन्‍होंने कहा कि जिस दिन गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों का ऐलान हो रहा था तब मेरी नजर टीवी पर बनी हुई थी. हम फोन पर भी लगातार अपडेट देख रहे थे.

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