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कोई ताकत बढ़ाने के लिए तो कोई करता था सोने की तरह इस्तेमाल, कोका कोला का इतिहास वाकई दिलचस्प है History-Of-Coca-Cola



कोका कोला पिछले कई दशकों से भारत के सबसे मशहूर पेय में शुमार है. देश ही नहीं दुनिया भर में कोका कोला ने एक सफल कोल्ड ड्रिंक के रुप में नाम कमाया है. देश में काफी उतार-चढ़ाव देख चुका ये ब्रांड आज घर-घर में अपनी पहचान बना चुका है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कैसे शुरु हुआ था, कोका कोला का ये दिलचस्प सफ़र

एक ज़माना ऐसा भी था जब कोका कोला सुनकर लोगों को लगता था कि इस पेय में तो कोकीन मिलाई जाती है, जिससे लोग इसके आदी हो जाते हैं. कोकीन जैसे हार्ड ड्रग्स की कोका कोला में मिलावट भले ही सुनने में अजीब लगे लेकिन यह सच है कि कोका कोला में कोकीन नहीं, बल्कि कोका की पत्तियों का रस मिलाया जाता था.
कोका कोला की आज घर-घर में पहचान है. खास बात यह है कि इसका इतिहास भी बेहद रोचक रहा है. कोका कोला का आविष्कार, अमेरिका के अटलांटा शहर के केमिस्ट जॉन पेम्बर्टन ने किया था. अमेरिकी गृह युद्ध में ज़ख़्मी हुए पेम्बर्टन को मॉरफ़िन की लत लग गई थी. अपनी इसी लत से छुटकारा पाने के लिए ज़ॉन ने शराब में कोका की पत्तियों का रस मिलाकर पीना शुरु किया. जॉन को ये तरीका बेहद पसंद आया और उन्होंने इसे बेचना भी शुरु कर दिया.

पेम्बर्टन के इस नुस्खे के पीछे भी एक खास वजह यह थी कि अटलांटा की सरकार ने शराबबंदी पर सख्त कानून बनाए थे. इन्हीं कानूनों से बचने के लिए ही जॉन ने ये नुस्खा तैयार किया था. कोका कोला का पहला शब्द कहां से आया, इसे तो कमोबेश सब जानते या मानते रहे हैं. कोका कोला का पहला शब्द इसमें मिलाए जाने वाले कोका की पत्तियों के रस की वजह से ही है. लेकिन इसके अलावा कोला शब्द की कहानी बेहद दिलचस्प है.
असल में ये कोला शब्द आया है, Kola नाम के नट से. कोला नाम का ये बीज, पश्चिमी अफ्रीका के एक पेड़ का होता है. कोला की हरे रंग की फली होती है, जो क़रीब दो इंच लंबी होती है. इसमें सेम के बीज जैसा गुदाज फल होता है. इसका रंग भूरा और लाल होता है. पश्चिम अफ़्रीका में लोग इसे ताक़त बढ़ाने के लिए सुपारी की तरह चबाते थे.

माना जाता है कि इसे चबाने से लोगों पर एक तरह का सुरूर भी हावी हो जाता था, क्योंकि इसमें कैफ़ीन और थियोब्रोमाइन नाम के केमिकल्स होते हैं. ये दोनों ही केमिकल्स, चाय, कॉफी और चॉकलेट में भी मिलते हैं. यूं तो पश्चिमी अफ्रीकी देशों में कोला की खेती सदियों पुरानी है, लेकिन बाकी दुनिया को इसकी ख़ूबियों का अंदाज़ा सोलहवीं सदी में जाकर हुआ था.
ब्रिटिश इतिहासकार पॉल लवजॉय के मुताबिक, पश्चिमी अफ्रीका में पुराने ज़माने में लोग कोला के पेड़ों को क़ब्र पर लगाया करते थे. स्थानीय लोग लड़कियों के मासिक धर्म की शुरुआत के वक़्त होने वाले पूजा-पाठ में भी इनका इस्तेमाल करते थे. हालांकि कोला के बीजों के साथ एक दिक्कत यह थी कि इनमें नमी रहना ज़रूरी होता था, ताकि कोला के ये बीज लंबे वक़्त तक इस्तेमाल हो सकें. इसलिए इन्हें ज़्यादा दिनों तक सहेजकर नहीं रखा जा सकता था. मगर सैकड़ों साल पहले भी अफ्रीकी लोग कोला के बीजों को सहेजकर हज़ारों किलोमीटर दूर तक ले जाते थे.
कोला के बीजों की इतिहास में काफी महत्ता रही है. इनकी अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि इन बीजों को सोने के बराबर तरजीह दी जाती थी और राजा-महाराजा इन्हें तोहफ़े के तौर पर एक-दूसरे को दिया करते थे.
पॉल लवजॉय के मुताबिक, पंद्रहवीं सदी तक यूरोप के लोगों को कोला के बीजों की ख़ूबियों का अंदाज़ा नहीं हुआ था. यहां तक कि सोलहवीं सदी में जब पुर्तगालियों ने अफ्रीका के तटों पर तिज़ारत शुरू की, तो उन्होंने कोला के बीजों को भी कई ठिकानों तक ढोकर पहुंचाया था. लेकिन हैरानी की बात यह है कि फिर भी उन्हें कोला के बीजों की ख़ूबियों का एहसास नहीं हुआ. लेकिन जब 1620 में एक अंग्रेज़ व्यापारी, रिचर्ड जॉब्सन, गैम्बिया नदी के सहारे, पश्चिमी अफ्रीका के अंदरूनी हिस्से तक पहुंचा, तो उसके लिए कोला के बीज एकदम नई चीज़ थी.
जॉब्सन ने अपने सफ़रनामे में इसका ज़िक्र किया है. जॉब्सन ने लिखा है कि इन कड़वे बीजों को लेकर स्थानीय लोग बड़े उत्साहित रहते थे. लेकिन उन्हें कभी समझ नहीं आया कि इन कड़वे बीजों को लेकर आखिर लोगों में इतना पागलपन क्यों है? उत्सुक जॉब्सन जब इंग्लैंड लौटा तो अपने साथ कोला के छह बीज लेकर आया. मगर स्वदेश पहुंचते-पहुंचते वो सब ख़राब हो गए.

जॉब्सन की नाकाम कोशिश के बावजूद कोला की हल्की ख़ुमारी चढ़ाने वाली खासियत, यूरोपीय लोगों से ज़्यादा दिन नहीं छुपी रह सकी और उन्नीसवीं सदी तक अमरीका और यूरोप को कोला के बीजों की अच्छी-ख़ासी खेप अफ्रीका से भेजी जाने लगी थी.
यूरोप और अमरीका में कोला के बीजों की मदद से अब लोगों की सेहत का ख्याल रखा जा रहा था. इन बीजों से सिरप बन रहे थे. इंग्लैंड में 'फोर्स्ड मार्च' के नाम की एक टिकिया बेची जा रही थी, जिसमें कोका की पत्तियों का रस और कोला के बीजों की ख़ूबियां मिली हुई थीं. कंपनी का दावा था कि ये लोगों की भूख मिटाती है और उन्हें सेहतमंद बनाती है.
फ्रांस में कोला के बीजों को वाइन में मिलाकर एक सेहतमंद पेय तैयार किया गया था, जिसका नाम विन मारियानी था. इसका नुस्ख़ा फ्रेंच केमिस्ट एंजेलो मारियानी ने 1863 में तैयार किया था.
कहते हैं कि पोप लियो तेरहवें, इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया, अमरीकी वैज्ञानिक थॉमस एडिसन और ब्रिटिश लेखक आर्थर कॉनन डायल जैसी हस्तियां विन मारियानी की मुरीद थीं. इसके प्रचार में इन नामचीन लोगों की तस्वीरें इस्तेमाल की जाती थीं.
लोग मानते हैं कि अमरीकी केमिस्ट जॉन पेम्बर्टन को कोका कोला का आइडिया, विन मारियानी से ही मिला था. अमेरिकन केमिस्ट पेम्बर्टन ने कोला और कोका के स्वाद के मेल से तैयार अपना ड्रिंक बाज़ार में उतारा तो लोगों ने उसे ख़ूब पसंद किया. पहले ही साल लोग औसतन कोका कोला की नौ ड्रिंक पी रहे थे. आज दुनिया भर में रोज़ कोका कोला की क़रीब दो अरब बोतलें बिकती हैं.

कोला और कोका की तासीर लोगों को इतनी अच्छी लगी कि जब 1985 में कंपनी ने बिक्री बढ़ाने के लिए एक तज़ुर्बा किया तो उसे भारी नुक़सान हुआ. तीन महीने बाद ही कंपनी को नए नाम के साथ अपना प्रोडक्ट बाज़ार में दोबारा लाना पड़ा.
हालांकि अब कंपनी कोला का असली स्वाद मिलाकर अपना ड्रिंक नहीं तैयार करती. अब इसकी केमिकल नक़ल से कोला बनाया जाता है. इसका पाउडर दुनिया भर में कोका कोला की फैक्ट्रियों में भेजा जाता है. जहां पर कंपनी के डीलर, इस कंसंट्रेट की मदद से कोका कोला तैयार करते हैं.
अब कोला का असली स्वाद पाने के लिए इसके नट को ही चखना होगा. वैसे कोला की मदद से सोडा बनाने की तमाम तरक़ीबें उपलब्ध हैं. जैसा कि, रिचर्ड जॉब्सन ने लिखा था, कि कोला बेहद कड़वा होता है. मगर आज इसे संतरे के रस, वनीला और कैरेमेल में मिलाकर खाने से कड़वाहट को कम किया जा सकता है. हां, इन तमाम चीज़ों को मिलाने के बावजूद इसमें मौजूद कैफ़ीन और थियोब्रोमाइन से आपको हल्का नशा ज़रूर होगा.

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