दुनिया तो जान-मान-पहचान गयी है भारत के पैरा-चैंपियंस को, लेकिन क्या आप जानते हैं? para-athletes-make-india-proud
दृढ़ विश्वास के आगे हर चुनौती आसान सी लगती है. यही जज़्बा, यही जोश और यही विश्वास दिखाया भारत के पैरा-एथलीट्स ने. 12 साल पहले भारत ने जेवलिन थ्रो में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था, जो 2016 पैरालिम्पिक्स के पहले तक कभी नहीं टूटा था. लेकिन इस बार वो रिकॉर्ड टूट गया, जिसे तोड़ा एक भारतीय ने. 2016 में भारत की तरफ से 19 पैरा-एथलीट्स रियो में अपना टैलेंट दिखाने गए थे और हर्ष की बात ये है कि इस बार इन चैंपियंस ने देश के लिए 4 मेडल जीते हैं. इसमें 2 स्वर्ण, 1 रजत और 1 कांस्य पदक शामिल हैं.

पैरा-एथलीट्स और देश के लिए ये अब तक का सबसे अच्छा परफॉरमेंस है. पर इस स्वर्णिम प्रदर्शन के पीछे कड़ी मेहनत, कुछ कर दिखाने की ललक है, जीत का जज़्बा है, जो कड़े संघर्ष के बाद सामने आया है. इन चैंपियंस के जीवन से जितनी प्रेरणा ली जाए कम है. आपने इनके जगमगाते और खनखनाते मेडल्स की चकाचौंध तो देख ली, लेकिन वो इस शिखर तक कैसे पहुंचे, ये देखना और भी ज़रूरी है.
1. "एक कमज़ोर न कहलाने की ज़िद ने मुझे आज चैंपियन बनाया है"- देवेंद्र झाझरिया

देवेंद्र झाझरिया के नाम पहले से ही जेवलिन थ्रो का रिकॉर्ड था. इस बार उन्होंने खुद का ही रिकॉर्ड तोड़ कर स्वर्ण पदक अपने नाम किया और नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. अब तो ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है, जो देवेंद्र के नाम न हो. बचपन से ही उनका प्रदर्शन इतना अच्छा था कि सामान्य बच्चों के साथ प्रतिस्पर्धा में वो जिला चैंपियन बने. देवेंद्र को सरकार ने भी अर्जुन अवॉर्ड और पदमश्री से नवाज़ा है. देखिये इस वीडियो में देवेंद्र की ही ज़ुबानी, उनकी इस अपार सफलता की कहानी.
2. "अपने पास जो नहीं है उसके बारे में सोचो मत, अपने पास जो है उसके बारे में सोचो और काम करो"- सुयश जाधव

बचपन से ही सुयश को तैराकी का शौक था. शायद इसलिए भी क्योंकि सुयश के पिता खुद एक नेशनल लेवल के तैराक रह चुके हैं. उन्हें अपना हाथ गंवाने का ग़म नहीं था, गुस्सा तब आता था जब लोग कहते थे कि 'तुम क्या कर सकते हो?'. आज उन्हीं लोगों को सुयश ने इंटरनेशनल लेवल का तैराक बन कर करारा जवाब दिया है.
3. "बहानों से काम नहीं चलेगा, यही मेरा मंत्रा है"- दीपा मलिक

दीपा के जीवन की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं. वो पहली भारतीय महिला हैं, जो रजत पदक जीत कर पैरा-चैंपियन बनी हैं. शुरुआत में दीपा एक तैराक थीं, लेकिन बाद में उन्होंने एथलेटिक्स में अपना टैलेंट आज़माया और तब से कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. दीपा ने 10 साल के कड़े परिश्रम के बाद 46 साल की उम्र में ये रजत पदक हासिल किया. उनके 'Never Give Up' एटीट्यूड को और करीब से जानने के लिए ये वीडियो देखें.
4. "ज़िंदगी कभी ख़त्म नहीं होती संघर्षों से, हमेशा चलती रहती है विराम-अविराम"- अंकुर धामा
नेत्रहीन होने के बावजूद भी अंकुर को हमेशा से खेल-कूद का शौक था. वो अपने दोस्तों के साथ दिन भर क्रिकेट खेलते रहते थे. धामा ने फिर भागना शुरू किया और उनकी ये दौड़ आज तक चल रही है. वो बचपन से ही भागने में बहुत तेज़ थे और धावक के रूप में उन्होंने कई सारे पदक जीते हैं. सिर्फ़ यही नहीं, अंकुर ने थाईलैंड फुटबॉल चैंपियनशिप में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया है और एक गोल भी मारा है.

इन पैरा-चैंपियंस के जीवन की कहानी में ही एक सफल ज़िंदगी का राज़ छुपा है. हम कामना करते हैं कि इनका प्रदर्शन देश और दुनिया के लिए मिसाल बने. इनकी इस सफलता पर Indusind बैंक, जो कि हर कदम पर इन पैरा-चैंपियंस के साथ खड़ा रहा है, ने इन्हें बधाई देते हुए ये वीडियो बनाया है. तो इसे देखें ज़रूर क्योंकि इन पैरा-एथलीट्स के ज़बरदस्त प्रदर्शन के बाद होने लगा है हो-हल्ला, गली-मोहल्ला.

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